आंखों के नगमे,
जाने कितने बरसे,
आये हम तरसते,
उनकी एक झलक को…
रिमझिम ये सावन के,
तराने सुनाए,
रंगीली फाल्गुन के,
रंग ये बहाये…
रंज समा में, पलकों से छुपाये,
जल बेपनाह, छलके ना पाए..
भूरी निगाहों से, तन के बताए,
काले कजरारे ये, मन को लुभाये…
झीनी झीनी नैनों से, सपने सजाये,
पलके झुकाये, कोई शर्मा के चले आये ।
रंग बहारों के, खुशनसीब सितारों के,
बलखाते बादल के, घर वो बसाये ।
हिरनी से ईक्षण ये, कभी गुमसुम कभी मद्धम ये,
दौड़े ये, भागे ये, चल कर वो, छुप कर वो,
चाँद सितारों के जहाँ…
मोरनी से नाचे ये, सांसों से साँसों तक,
दिल को ये बांधे उस पतंग की डोर तक..
नैना ये, रैना में,
नैना ये रैना में…
थोड़ा जब कतराए, थोड़ा सा मुरझाये…
सूनेपन में झांके ये राह,
घटाओं से तरसाये, मन को तो बहकाये,
किसी हसीन के मन की बात
पल में ही कह जाए।
उन्हीं नैनों की तकरार से,
भावों के बाज़ार से,
कभी उस एक मयार को
ढूँढ जाता है, ये दिल, क्षण में ही..
रंगीले नैन ये, सुरीले रैन में,
भिगोये मन को,
मेरे रैन को, छू कर,
दिल में बस कर,
यादों में छप कर,
कह गए, बात वो, पल भर मुकर कर,
रैना में भी चमककर,
बिन स्वर के बोल गए, दिल की दशा, बह कर।