मनुष्य के जीवन में बचपन की यादें हमेंशा एक रंगीन सपने की तरह होती हैं जो बार बार आपके मन के दर्पण पर तैरती रहती हैं, ओर आप का ह्रदय उन बीते हुए दिनों को याद कर, यह चाहता है कि एक बार फिर उन्हीं स्थानों ओर गलियों में घूमता रहूँ। खैर बचपन तो बचपन ही होता है ओर यह तो बांधे भी नहीं बंधता। बचपन की यादें तो एक सागर की लहरों की भांति हमेशा मन के सागर में उमड़ती उतरती रहती हैं। बचपन की इन ही यादों की एक तस्वीर आज मैं आप के साथ सांझा करना चाहता हूँ।
कश्मीर घाटी पूरी धरती पर एक ऐसा स्थान है जहाँ का हर स्थान प्राकृतिक सुन्दरता के लिए प्रसिद्ध है ओर इस की मिसाल दुनिया में कहीं नहीं मिलती। कशमीर को ॠशियों की तपोभूमि कहा गया है ओर यहाँ शक्ति ओर शिव की आराधना का प्रचलन आदि काल से चलता आ रहा है। कशमीर ने ललदयद ओर रूपा भवानी जैसी कवित्रयों को जन्म दिया जिन्हों ने शिव और शक्ति का गुणगान उनकी कविताओ मे किया। माता रूपा भवानी को कशमीर मे माता शारिका का एक रूप माना जाता है, ओर माता शारिका एक शक्तिपीठ के रूप मे श्रीनगर के हारी पर्वत पर विराजमान हैं ।
हारी पर्वत श्रीनगर शहर के केन्द्र मे स्थित एक पहाडी है, जो कश्मीरी हिन्दु आस्था का प्रतीक है ओर इस पर स्थित शारिका मन्दिर यहा के प्रसिद्ध एवं प्राचीन शक्तिपीठौ मे एक हैं। कश्मीरी इतिहास मे जो भी संत तथा सिद्ध पुरुष आज तक हुए,उन सबने माता शारिका की उपासना तथा आराधना की। कश्मीर मे शक्ति पूजन की परम्परा बहुत पहले से चली आ रही हैं और घाटी में अलग अलग जगहों पर माता के विभिन्न स्वरूपों के शक्तिपीठ हैं,जैसे माता खीर भवानी तुलामुला, ज्वाला माता खीरव, ज्येष्ठा माता चश्मा शाही श्रीनगर, उमा देवी बरारि आंगन अनंतनग,त्रिपुर सुंदरी इत्यादि।
इस लेख में हम माता शारिका मन्दिर और हारी पर्वत, जोकि श्रीनगर शहर के केन्द्र मे स्थित एक पहाडी हैं का वर्णन कर रहें हैं। हारी पर्वत कश्मीरी हिन्दुओ के इतिहास की एक महत्वपूर्ण कढी हैं और इस के साथ श्रीनगर शहर की पूरी हिन्दु समाज का एक आत्मीय संबंध रहा हैं।
कशमीरी भाषा मे ` हाअर ' का अर्थ एक बडी चिड़ियां होता है। बचपन मे हमारी दादी नानी अक्सर एक कहानी के द्वारा `हारी पर्वत कैसे बना? ' यह सुनाते थे। वह कहते थे , कि कशमीर मे आदि काल मे जहां यंह पर्वत स्थित हैं वहां एक झील थी, ओर उस झील में एक राक्षस रहता था। वह राक्षस यहां के लोगों को मारता था। ऐसे मे यहां के ऋषियों और तपस्वीयों ने मां शक्ति का आवाह्न किया ओर मां जगदंबा ने उनको दर्शन देकर उनकी पुकार पर एक चिड़िया का रूप ले लिया, और इस माता रूपी चिड़िया ने अपनी चोंच मे एक कंकर रख कर उस झील के उपर उड़ान बरी,ओर वह कंकर उस झील मे ढाल दी। देखते देखते वह कंकर एक पहाड बन गया ओर इस तरह माता शारिका की कृपा से उस राक्षस का अन्त हो गया। इसी वजह से इस पर्वत का नाम हारी पर्वत पडा। माता शारिका का शक्तिपीठ ईसी पर्वत पर स्थित हैं।
बचपन मे हम अक्सर अपने रिश्तेदारों या अन्य स्थानीय साथियों के साथ प्रातःकालीन समय मे पर्बत की तरह निकल जाते थे। एक तो सुबह की सैर भी हो जाती थी,और जितने मन्दिर ओर पवित्र स्थल इस हारी पर्वत की परिक्रमा मे थे,उनके भी दर्शन हो जाते थे। हमारे घर से हारी पर्वत करीब 5 km दूर हैं। इधर यह कहना जरूरी हो जाता है कि मुगल period मे अकबर बादशाह के शासनकाल मे इस पर्वत पर एक दुर्ग बनाया गया था और इस पर्वत पर एक विशाल किला तामीर किया गया था जो आज भी संरक्षित है। हारी पर्वत ओर किले के इर्द-गिर्द एक उंची और मोटी दीवार बनाई गई थी,जिससे कि बाहरी आक्रमण से बचा जा सके। इस दीवार को कशमीरी में ` कलाई ' बोला जाता था। पुराने जमाने मे दुर्ग मे जाने के लिए इस पर्वत के चारों ओर 4 दरवाज़े बने थे, जिनके खंडहर अभी भी दिखाई पढते हैं। जब हम हारी पर्वत के करीब पहुंच जाते थे तो हम पहली ढयोढी से किला परिसर के अन्दर पहुंच जाते थे। अन्दर पहुंचते ही हम पहले दाई ओर हजरत मोकदम साहिब की दरगाह पर सजदा करते थे ओर फिर बांई तरफ जा कर हम श्री गणेश जी के मंदिर पहुंच कर पुजा अर्चना का शुभारंभ करते। श्री गणेश के पूजन के बाद हम माता शारिका मन्दिर की ओर चलना शुरू करते। दूसरा पढाव देवी आंगन है, जिसके अन्तिम छोर से शक्तिपीठ शारिका मन्दिर की सीढियां चढकर हम माता शारिका मन्दिर मे प्रवेश कर माता के दर्शन करते थे। माता शारिका एक बडी शिला के रूप मे यंहा पर विराजमान है। ओर इस पवित्र शिला पर प्राकृतिक श्री चक्र का प्रतिबिम्ब बना है, इसीलिए माता शारिका मन्दिर को चक्रश्रोवरी मन्दिर भी कहा जाता है। माता के मन्दिर से निकल कर हम आगे का प्ररदक्षण जारी रखकर श्री रघु कोल के मन्दिर पहुंच जाते। यह मंदिर श्री सीताराम का प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर के आगे कोई ढेड किलोमीटर चल कर हम इस हारी पर्वत किले के चौथे दरवाजे ` कअठय ' दरवाजे से बाहर निकल कर Rainawari mohalla पहुंच जाते। लेकिन हम ' कलाई ' के अन्दर से हीं इस पूरे पर्वत की परिक्रमा कर के श्री गणेश जी के मंदिर होते घर पहुंच जाते थे