यूँ तो कश्मीर घाटी को शैव दश॔न की दरोहर माना जाता हैं, और कशमीर की आत्मा वह चेतना शिव भक्ति से ओतप्रोत है, परन्तु इस संस्कृति में भारत के हर उत्सव ओर पव॔ को मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। कश्मीर को तप की भूमि कहा गया है ओर यहाँ शक्ति ओर शिव की आराधना का प्रचलन आदि काल से चलता आ रहा है।
पूरे भारत की तरह ही श्री कृष्ण जन्म उत्सव मनाने की परमपरा कशमीर के इतिहास का एक केंन्द्र बिन्दु है।जैसे पूरे भारत में श्री कृष्ण जन्मोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है वैसे ही कश्मीर मे भी यह उत्सव मनाया जाता था। चूंकि 1990 के बाद कश्मीरी पंडितों को घाटी से विस्थापित होना पडा,ओर तब इन कश्मीरी पंडितों के उत्सवो की छाप घाटी में बहुत कम हो गई है। लेकिन तब भी कश्मीरी विस्थापित समुदाय जन्म अष्टमी का पव॔ उसी श्रद्धा और विश्वास से जम्मू ओर भारत के विभिन्न क्षेत्रों में मनाता है ।
कशमीर घाटी में श्री कृष्ण जन्माष्टमी को कश्मीरी भाषा मे ज़रमअ सअतम् कहा जाता है। पूरे भारत में श्री कृष्ण जन्माष्टमी भाद॔पाद कृष्णपक्ष की अष्टमी को मनाई जाती है, परन्तु कश्मीर में ज़रमअ सअतम् भाद॔पाद कृष्णपक्ष की सप्तमी को ही मनाया जाता है। यह इस वजह से है कि भगवान श्रीकृष्ण जी का जन्म सप्तमी ओर अष्टमी की मध्य रात्रि को हुआ,जिस समय रात्रि के 12 बजे थे, इसलिए कश्मीरी पंडित समुदाय पूरे दिन वत॔ रखते और रात्रि में वत॔ का समापन करते।
ज़रमअ सअतम् 3 दिन का उत्सव होता था। पहले दिवस श्रीकृष्ण, श्री राधा कृष्ण ओर श्री कृष्ण की जीवन से जुड़ी झाँकियाँ घाटी के हर एक नगर में निकाली जाती,ओर श्रीनगर उत्सव के रंग मे रंग जाती थी। तीसरे दिन अष्टमी तक लोगो के इस पव॔ को मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है।
जय श्री कृष्णा 🙏🙏