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ज़रा गोर करो कुछ कहने दो Poem by Mr. Anil Kumar Dhar

ज़रा गोर करो कुछ कहने दो
याद करो वह काली रात
टिटूरति सर्दी थी उनीस जनवरी
की, बिजली गुल, कांग्री फेरांन् मैं
दो टांगू के बीच देहक रही थी
अचानक अज़ाँ, अलाहः अकबर
चारु और गूनजा, मस्जिदु से खौफनाक
आवाजे आयी, हम सहम गए।
सब कमरे के कोने में सिमटे गए।
दिमागी सोच मैं गुम एक दूसरे
की और देख रहे मुर्दे जैसे
दरवाज़े, खिड़कियां, रोशनी, सब
बन्द करो, शी चुप होजाओ, आवाज नहीं
सुनने दो, शी बच्चे का रोना बन्द करो
अब क्या होगा शायद हम पर हमला होगा
खिड़कियों से मत जांकों, एक जगह सब बैठे रहो, ज़रा सुनने दो, अब क्या होगा
आज हम पे हमला होगा, आज हमे मरना होगा। जमा पूंजी जो भी कहीं है समेट लो
ज़ेवर, गहने जिस्म से उत्ताओं, शायद यह लोग हमे लूट ले। नकदी अगर है कही समेट लो, शायद भागना पड़े। रोते क्यों हो। रोने से क्या होगा। कुछ सोचने दो, खामोश रहो।

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